मन, बुद्धि और विवेक पर वातावरण का बहुत प्रभाव पड़ता है। शांत वातावरण साधना, ज्ञान और आध्यात्म की कुंजी होता है। तर्क शक्ति के वृद्धि हेतु , शारीरिक विकास और राष्ट्र भक्ति के लिए वातावरण की शुद्धता अपेक्षित होती है। तहजीब और सलीका, झुकना और झुके को कंधे पकड़ कर उठाना, साथ चलना, साथ बैठना व्यक्ति के जीवन पर पड़े वातावरण के आधार पर समझा जा सकता है। प्राथमिक और द्वितीयक समूह व्यक्ति के प्रस्थिति का निर्माण करते हैं और यह सब अहरौरा के जय हिंद इंटर कॉलेज में मिलता था। था इसलिए क्योंकि आज यहाँ की प्रस्थिति बदली – बदली नजर आती है। खुले वातावरण में गुरू कुल शिक्षा प्रणाली के सापेक्ष होने वाली शिक्षा विलुप्त हो गई है। बच्चे /बच्चियां बंद कमरों में शिक्षा अध्ययन करते हैं जहाँ का वातावरण शिक्षा के लिए उपयुक्त कम से कम इस विद्यालय में नहीं है। इसके कई निम्न कारण है – कक्षाओं में साफ सफाई का स्तर खराब है। लड़कियों के कक्षाओं के बाहर कूड़े का अम्बार है। बारिश के मौसम में कूड़े में सड़न पैदा होती है जिससे सड़ांध कक्षाओं में आती है। कक्षाओं में विद्युतीकरण नहीं है जिसके कम रोशनी में शिक्षा अध्ययन करने को बच्चे बाध्य है। इसका सीधा प्रभाव बच्चों के आंखों पर पड़ता है। एक कक्षा में एक साथ मानक से अधिक शिक्षार्थी आते हैं जिससे वातावरण में घुटन महसूस होती है। पंखे की आवश्यकता महसूस होती है जो लड़कियों के कमरों की ओर नहीं है। मन का मन्दिर देवालय, तन का मन्दिर शौचालय लिखा हुआ है मगर शौचालय की साफ सफाई स्लोगन के विपरित है।।
इस विद्यालय में बंदरों का आतंक है, भोजन काल के दौरान यह आतंक और बढ़ जाता है। ऐसे माहौल में वह शक्ति दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जावें, पढ़ कर शिक्षा ग्रहण करने वाली बच्चियों में असंतोष का भाव रहता है। आखिरकार जिम्मेदार अधिकारियों को इतने दिनों से यह समस्या दिखाई क्यों नहीं देती है, सोचनीय है। कहीं बच्चियों के शांत स्वभाव शांत समुन्द्र जैसा तो नहीं है और ऐसे वातावरण के खिलाफ ज्वार रखती हो जो आने वाले समय में विद्यालय प्रशासन के खिलाफ विद्रोह बनकर फूट न पड़े।
रिपोर्ट- हरिकिशन अग्रहरि
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