देवरिया: एक छोटे से गांव में पली-बढ़ी गिरिजा त्रिपाठी 1993 में संस्थान का पंजीकरण कराने के साथ ही मेहनत कर आगे बढ़ने की तैयारी की। दस साल तक सिलाई, कढ़ाई केंद्र का संचालन करते हुए समाज सेवा की तरफ बढ़ने लगी। इस बीच कुछ अधिकारियों ने उसको प्रश्रय दिया और अल्पावास समेत विभिन्न तरह की संस्था की उसे जिम्मेदारी मिल गई। डेढ़ दशक में गिरिजा करोड़पति बन गई। शहर से सटे जमीन लेकर आश्रम बनवाने के साथ ही अपनी मकान भी उसी में बनवा ली, लेकिन इसका एहसास लोगों या अधिकारियों को नहीं हो सका। अब पुलिस के पर्दाफाश के बाद गिरिजा की पूरी कलई खुल गई है।
खुखुंदू थाना क्षेत्र के ग्राम नूनखार निवासी मोहन तिवारी के साथ गिरिजा त्रिपाठी से शादी हुई। शादी होने के बाद गिरिजा ने मेहनत कर घर की आर्थिक स्थिति मजबूत करने की ठान ली और 26 फरवरी 1993 में मां ¨वध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं सेवा संस्थान का रजिस्ट्रेशन गोरखपुर चिट फंड में हुआ।
दस साल तक गिरिजा की संस्था ने भटनी, सलेमपुर व भागलपुर क्षेत्र से पहले छोटे-छोटे सिलाई-कढ़ाई, साक्षरता आदि के प्रोजेक्ट का कार्य किया। करीब डेढ़ दशक पहले संस्थान को महिला अल्पावास गृह चलाने की जिम्मेदारी मिली। इसके बाद उनकी संस्था को कार्यक्रम और प्रोजेक्ट मिलने के साथ ही उनकी संपत्ति भी बढ़ती गई। अल्पावास गृह के बाद संस्था को बाल गृह बालिका, शिशु गृह, दत्तक आदि सेंटर तथा गोरखपुर व देवरिया में वृद्धाश्रम चलाने की भी जिम्मेदारी मिली। इस दौरान गिरिजा ने रजला में करीब 10 कट्ठा जमीन खरीद लिया, जिसकी चहारदीवारी कर उसी में अल्पावास गृह का भी संचालन होने लगा। खास बात यह है कि गिरिजा देवरिया में डेढ़ दशक पूर्व जब शिफ्ट हुई तो अधिकारियों के काफी नजदीक आ गई और अधिकारियों के सिर पर हाथ पड़ते ही उसकी प्रगति तेजी से हुई। डेढ़ दशक में ही वह करोड़ पति बन गई। समाज सेवा के पीछे वह घिनौना कृत्य करती रही, लेकिन इसकी भनक तक किसी को नहीं लगी। अगर कभी किसी ने मामले को उठाने का प्रयास किया तो गिरिजा ने अधिकारियों को अपने पक्ष में कर उसे दबा दिया। इसके अलावा किसी ने अगर कुछ आंदोलन की धमकी दी तो उसे धमकाकर भी शांत करा दिया।
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