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बेतिया- मुस्लिम समुदाय का ईद ए कुर्बान आज, नमाज की अदायगी विभिन्न ईदगाह में विभिन्न समय पर होगी

Ibn24x7news विजय कुमार शर्मा प,च,बिहार
मुस्लिम समुदाय के लोग ईद ए कुर्बान का पव बकरीद कल मनाने का आयोजन किया जा रहा है इस आयोजन में मुस्लिम समुदाय के लोग विभिन्न स्थानों पर विभिन्न समय में ईदगाह में अदा करेंगे। सबसे प्रमुख हो एवं स्थानीय शहर में बड़ी ईदगाह में बकरीद की नमाज 7:30 में शुरू होगी जहां हजारों हजार की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग अपने-अपने घरों से निकलकर लोगों से मिलते जुलते हुए बड़ी ईदगाह में पहुंचेंगे जहां ईदगाह कमेटी के लोगों के द्वारा नमाज पढ़ने के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था की गई है साथी यह भी कहा गया है कि अगर रात में या दिन में पानी बरसने लगेगा तो बकरीद की नमाज अपने अपने महलों के मस्जिदों में अदा करेंगे क्योंकि बरसात के दिनों में ईदगाहों में पानी जमा होने की संभावना बनी रहती है जिसकी निकासी करना तुरंत संभव नहीं हो सकेगा इसी वजह कर मुस्लिम समुदाय को आगाह किया गया है कि अगर पानी होने लगे जो अपने मोहल्ले के मस्जिदों में हीनमाज अदा करेंगे।
ईद ए कुर्बान का पर्व मुस्लिम समुदायों में त्याग एवं बलिदान की परंपरा को जारी रखने के लिए एवं खुदा की इबादत को पूरा करने के लिए और उनके बताए हुए रास्ते पर चलकर कुर्बानी करने का जो आदेश दिया गया है उसी पर अमल करना ही सही होगी। मुस्लिम समुदाय के लोग ईद ए कुर्बान के दिन नमाज पढ़ने के बाद अपने-अपने घरों को लौट कर बकरी की कुर्बानी करते हैं बकरे की कुर्बानी किए गए मांस को तीन बराबर हिस्सों में बांटकर एक भाग को अनाथों गरीबों लाचार है मजदूरों को दे देते हैं दूसरे भाग को अपने इष्ट मित्र के लिए उनको परोसने के लिए रखते हैं तथा तीसरे भाग को अपने के इस्तेमाल में लाते हैं। इस तरह बकरे की कुर्बानी करने की प्रक्रिया 3 दिनों तक लगातार चलती रहती है अपने अपने इच्छा के अनुसार बकरे की कुर्बानी करते हैं। इसके अलावा मुस्लिम देशों में बकरे की कुर्बानी के अलावा ऊंट की कुर्बानी और दुंबे की कुर्बानी दी की जाती है जो इस्लामिक नियम के अनुसार जायज करा दिया गया है।
कुर्बानी के इस पर्व के पीछे इस्लाम धर्म में यह बताया गया है कि त्याग और बलिदान की इच्छा से सहायता मिलती है। अल्लाह ने अपने प्यारे नबी इब्राहिम अली सलाम को अपने बेटे इस्माइल अली सलाम की कुर्बानी करने के लिए हिदायत दी थी ,इस हिदायत पर अमल करते हुए उन्होंने अपने बेटे को बलि पर चढ़ा दिया मगर ऊपर वाले ने इनकी इस बलिदान को देखते हुए उनके बेटे के स्थान पर एक दुंबा आ गया जिसे वह छुरा से हलाल करो कुर्बानी की रस्म अदा की जो आज तक इस प्रश्न को जिंदा करने के लिए कुर्बानी की रस्म को अदा की जाती है जिसे मुस्लिम समुदाय प्रति वर्ष 10 जिलहजजा को कुर्बानी का पर्व के रूप में मनाते हैं जो इस्लाम धर्म में इसे जायज करा दिया गया है कुर्बानी करना अनिवार्य बना दिया गया। मुस्लिम समुदाय में भी जिन लोगों के पास कुर्बानी करने की हैसियत नहीं होती है उन पर फर्ज नहीं है मगर जो लोग इतनी दौलत रखते हैं कि खाने पीने के अलावा अगर राशि उपलब्ध है तो उन पर कुर्बानी करना जायज है अगर नहीं करेंगे वह गुनहगार होंगे।

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