पर्यटन उद्योग और फिल्म निर्माण के लिए मुफीद है अहरौरा क्षेत्र
किसी कहानी की स्क्रिप्ट लिखी जाय और प्रकृति का समावेश न हो, ऐसा बहुत कम होता है। पहाड़ी झरने, जंगल, पुराना मंदिर, टूटा किला, अवशेष प्राचीन खंडहर, पलाश के फूल, महुए के पेड़ों में छिपी पक्षियों के कोलाहल, पहाड़ों पर नाचता मोर, आदिवासियों का झुंड, पपीहे की बोली, कोयल की कूंक, उड़ते बादल, मचलते बहकते पहाड़ी जल स्रोत, रोड़ के किनारे महकते जंगली फूल,प्राचीन बाज़ार, ऊंटों का कुनबा सब कुछ अहरौरा के इर्दगिर्द दिखता है। अशोक के लाट, गौतम बुद्ध सम्बन्धित शीलालेख भी इन्हीं पहाड़ियों के इर्दगिर्द ही है। हाल के वर्षों में हिंदी फिल्म गैंगस्टर आफ बासेपुर के अतिरिक्त कई महत्वपूर्ण टेलीविजन पर दिखाई जाने वाली धारावाहिकों का निर्माण इन्हीं क्षेत्रों में किया गया है। इन सभी के पीछे प्रशासनिक अमला और जनता का बेहद सहयोगात्मक रवैया रहा है लेकिन रहने का उचित प्रबंध न होने के कारण प्रतिदिन वाराणसी से इन क्षेत्रों में फिल्मकारों को आना पड़ता था जिससे बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था। पर्यटन के क्षेत्र के रूप में विकसित किये जाने का सम्पूर्ण स्कोप के बावजूद सरकारी अमला अपनी विशेष निगाहें अहरौरा को नहीं दी है जिसके फलस्वरूप देशी विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा इधर नहीं लग पाया है और न ही पर्यटन स्थल से संबंधित रोजगार पनपे हैं। अहरौरा से आठ किलोमीटर दूर लिखनियां दरी, दस किलोमीटर दूर ग्राम छातो का विहंगम झरना, बारह किलोमीटर दूर बैजू बाबा, पंजाबी बाबा आदि बाबाओं की तपस्थली भंदरिया झरना सहित कई बरसाती झरने आम जन मानस को बरबस अपनी ओर खींच लेते हैं। इन पहाड़ों पर आदि मानव काल प्राकृतिक शिलालेख, पहाड़ों की कन्दराओं में भित्तिचित्र कई तिलिस्मी कहानियों के आज भी गवाह हैं। इन सभी पहलुओं को मासिक आनंद का कारक मानकर पर्यटन विभाग, पुरातत्व विभाग और सरकारें इस क्षेत्र के साथ अभी तक न्याय नहीं कर पायी है। प्रकृति का श्रृंगार कब, कौन और कैसे करेंगा? यह अभी भी यक्ष प्रश्न है।
रिपोर्ट हरीकीशन अग्रहरि ibn24x7news चुनार मीरजापुर