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मिर्जापुर – मीरजापुर मुख्यालय का महिला अस्पताल : जहां चीखती-चिल्लाती, रोती-गिड़गिड़ाती माताओं के गर्भ से बच्चे जन्म ले रहे

रिपोर्ट विकास चन्द्र अग्रहरि ब्यूरो मीरजापुर
मीरजापुर । केन्द्रीय चिकित्सा एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल के संसदीय क्षेत्र के मुख्यालय पर ही सरकारी महिला अस्पताल के CMS तथा कुछ महिला नर्सों पर प्रदेश के वित्तमंत्री तथा प्रभारी राजेश अग्रवाल 7 सितम्बर को भड़क पड़ गए तो यह मामूली बात नहीं है । श्री अग्रवाल जब अस्पताल पहुंचे और बेबस महिलाओं ने उन्हें आपबीती सुनाई तो उन्होंने 24 घण्टे में जांच और निलंबन का हुक्म दिया लेकिन ऐसा इसलिए सम्भव नहीं दिखता कि 24 घण्टे में सबकुछ हो जाएगा क्योंकि प्रायः इस तरह के आदेश होते रहते हैं और उसका अंत फ्रिज में बर्फ जमने की तरह होता रहा है ।
इस बार हो जाए तो स्वागत

यदि इस बार मंत्री का आदेश 24 घण्टे में धमाकेदार हो जाए तो स्वागतयोग्य माना जाएगा । वैसे 8 सितम्बर महीने का दूसरा शनिवार और 9 सितम्बर रविवार है । निलंबन शासन से होना है । इस बीच इतना समय मिल जा रहा है और कोई न कोई जरूर प्रकट हो जाएगा, निलंबन के बादलों को छांटने के लिए सूरज बनकर ।
रुपए के लेनदेन में जन्मते नवजात

नवजात बच्चों पर परिवेश और वातावरण का भारी असर पड़ता है । इसीलिए 4/5 दशक पहले तक घरों में प्रसूतिकक्ष में भगवान के रूप में जन्मते थे बच्चे । इस कक्ष में हर किसी का प्रवेश नहीं होता था ताकि कोई दुष्प्रभाव न पड़े लेकिन महिला अस्पताल में छीना-झपटी, लूट-खसोट की शिकार माताओं को चीखते-चिल्लाते, रोते, गिड़गिड़ाते हालात में जन्मते बच्चों पर क्या असर पड़ेगा, यह तो कोई मनोवेज्ञानिक ही अच्छा बता सकता है । क्योंकि यह पुष्ट हो चुका है कि नवजात बच्चों में समझने की क्षमता बहुत अधिक होती है ।
यह तो हांडी के चावल का एक नमूना है

आमधारणा है कि पिछड़े जिले के अस्पताल का यह सिर्फ नमूना है । राजधानी लखनऊ सहित महानगरों तक में अस्पतालों में ही नहीं किसी दफ्तर के बाहर, सचिवालय के बाहर, अनेक मंत्रियों एवं विधायकों के बाहर इस तरह के छापे डाले जाएं तो शायद ही कोई ऐसा स्थान पवित्र मिले, जहां रुपए का खेल न खेला जाता हो ।
क्या कहते हैं सरकारी लोग
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सरकारी सेवा से जुड़े अनेकानेक लोगों का कहना है कि जब तक ट्रांसफर-पोस्टिंग में शुचिता एवं मंत्रियों एवं बड़े हुक्मरानों के दौरों में मातहत तमाम निजी इंतजाम नियमविरुद्ध करने के लिए बाध्य होगा तो वह येन-केन प्रकारेण धनार्जन करता रहेगा ।
उपाय क्या है ?

मंत्रियों, बड़े हुक्मरानों के दौरों पर होने वाला खर्च किसी की जेब के बजाय सरकारी बजट से हो । निजी और परिवार के दौरों पर सरकारीतन्त्र की सेवा न ली जाए तथा हर उच्च पदस्थ अपने अधीनस्थ को सिर्फ बयानों से नहीं बल्कि अपने आचरण से यह साबित करे कि वह शुचिता एवं पवित्रता का हिमायती है ।
वह कौन सी जगह है ईमान की, यह कोई बताए जरा

यह तो कार्यपालिका की स्थिति है । आए दिन खुद न्याय-मन्दिर में भी इस तरह की बातें उठती रहती हैं । संस्कार और नैतिकता के पाठ पढ़ाने वाले संस्थान यथा शैक्षणिक संस्थान, साधु-संतों के आश्रम, मानवीय सेवा के लिए गठित संस्थाओं में रुपए का न जाने क्या क्या हो जा रहा है, संचार-प्रणाली में भी धन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, ऐसी स्थिति में कौन किसको सुधारेगा, वर्तमान समय का यह यक्ष-प्रश्न है जिसका उत्तर देने के लिए कौन युधिष्ठिर बनेगा ? यह फिलहाल अनुत्तरित है ।

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