वेब पोर्टल चैनलो के पत्रकारों को नही कह सकते फर्जी पत्रकार ।
शोसल मीडिया की बढ़ती उपयोगिता और उसके अंग वेब न्यूज़ पोर्टल की बढ़ती संख्या और काम काजों से बौखलाये मीडिया के एक कथित वर्ग की ओर से एक भ्रामक प्रचार शुरू किया गया है जिसके अंतर्गत वेब पोर्टलों को गैर कानूनी करार देते हुए उनके स्टाफ के खिलाफ कार्यवाही करने की बात कही गयी है और ये प्रचार एक अपर सूचना आयुक्त के बयान को प्रदर्शित कर किया जा रहा है जबकि उक्त अधिकारी ने खुद ऐसे बयान का खण्डन करते हुए स्पष्ट किया है कि उनके द्वारा न्यूज़ पोर्टल को लेकर कोई बयान नही दिया गया है।
ये बात अलग है कि सरकार की ओर से अभी न्यूज़ पोर्टल को कोई वैधानिक मान्यता नही दी गयी है लेकिन उन्होंने उसकी उपयोगिता से भी इन्कार नही किया है और सूचना तंत्रों के क्रम में शोसल मीडिया और वेब पोर्टल को अपने काम काज का अंग माना है तभी तो विभाग की ओर से अपने अधिकारियों के कार्यक्षेत्रों के आवंटन में जारी सूची में बाकायदा एक अधिकारी दिनेश कुमार सहगल को नामित किया गया है, इनका नाम इस सूची में 15 नम्बर पर अंकित किया गया है, जिससे ये बात साबित हो गयी है कि सरकार और सूचना विभाग भी इन न्यूज़ वेब पोर्टल के संचालन को वैध मान रहा है, ऐसी दशा में उक्त भ्रामक समाचार से जहां बचने की जरूरत है वही उसके प्रकाशन और प्रसारित करने वालों के खिलाफ कार्यवाही किये जाने की भी आवश्यकता है, जिससे कि किसी भी भ्रामक समाचार का प्रकाशन न किया जा सके और किसी अधिकारी को बदनाम भी नही किया जा सके।
बीजेपी सरकार खुद भारत को डिजिटल इंडिया बनाने पर लगी है । तो फिर वो भारत देश के इस बदलते स्वरूप यानी शोशल मीडिया का विरोध क्यों करेगी । उनकी तो यही सोच है कि देश भ्रष्टाचार मुक्त हो तो देश की पैनी नजर यानी पोर्टल चैनलों का विरोध क्यों । जिनके कारण निचले स्तर तक कि खबरे प्रकाशित होती हैं । हाँ उन्ही अधिकारियों को पोर्टल वेब चैनल से दिक्कत हो रही जो भ्रष्टाचार में लिप्त है । क्योंकि पोर्टल चैनल के कारण आज छोटी से छोटी खबर और लोगो की परेशानी प्रकशित होती है । जिसपर सरकार की नजरे पहुंच पाती हैं ।