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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गुरु पूर्णिमा पर देंगे शिष्‍यों को आशीर्वाद, गोरखनाथ मंदिर में इस बार ऐसे मनेगा पर्व

रिपोर्ट ब्यूरो

गोरखपुर/नाथ संप्रदाय की गोरक्षपीठ गुरु गोरखनाथ मंदिर परिसर स्थित समृति भवन सभागार में 24 जुलाई को गुरु पूर्णिमा उत्सव श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाएगा। हालांकि इस परम्परागत उत्सव में कोरोना की पहली- दूसरी लहर से हुए बदलाव का इस बार भी पालन होगा। तिलक हॉल के बजाए स्मृति भवन सभागार में आमंत्रित शिष्यों के बीच होने वाले इस उत्सव में गोरक्षपीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को शिष्य तिलक नहीं लगा सकेंगे, न ही सीएम शिष्यों को तिलक लगाएंगे। लेकिन शिष्यों को गुरु का आशीर्वाद जरुर मिलेगा। इस कार्यक्रम आनलाइन प्रसारण भी किया जाएगा।
शनिवार की सुबह 9 बजे से होने वाले गुरु पूर्णिमा उत्सव के लिए मंदिर प्रबंधन ने साधु, संत, पुजारी, गृहस्थ शिष्य, जन प्रतिनिधियों के साथ शहर के प्रबुद्ध नागरिकों की सूची तैयार कर उन्हें निमंत्रण भेज रहे हैं। कार्यक्रम में संगीत नाटक एकेडमी के सदस्य लोक गायक राकेश श्रीवास्तव अपनी टीम के साथ गुरुवंदना और भजन प्रस्तुत करेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व और नाथ पंथ में इस परंपरा में भूमिका पर प्रकाश डालेंगे। मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमनाथ द्वारा निर्मित नाथ संप्रदाय का विशेष प्रसाद रोट का भोग लगेगा। आखिर में भंडारा लगेगा जिसका प्रसाद मंदिर में मौजूद सभी श्रद्दालु ग्रहण करेंगे।
मंदिर में गुरु पूजा की यह है परंपरा
मंदिर सचिव द्वारिका तिवारी ने बताया कि मंदिर में गुरु पूजा का आनुष्ठान अल सुबह ही शुरू हो जाता है। गोरक्षपीठाधीश्वर सुबह सबसे पहले गुरु गोरक्षनाथ की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं और फिर सभी नाथ योगियों के समाधि स्थल और देवी-देवताओं के मंदिर में जाकर उन्हें भी पूजते हैं। अंत में सामूहिक आरती की जाती है। गुरु की पूजा के बाद पीठाधीश्वर अपने शिष्यों के बीच होते हैं। शिष्य बारी-बारी से पीठाधीश्वर तक पहुंचते हैं। तिलक लगा कर उनका आशीर्वाद ग्रहण कर गुरु दक्षिणा देते हैं। हालांकि कोरोना काल में तिलकोत्सव का कार्यक्रम नहीं हो रहा। ब्लकि पीठाधीश्वर मंच से शिष्यों को गुरु-शिष्य की परंपरा की महिमा बताते हुए इस सनातन परंपरा को कायम रखने की अपील करेंगे।
गुरु पूर्णिमा और नाथ पंथ
महायोगी गुरु गोरक्षनाथ से लेकर गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ तक ने गुरु शिष्य परंपरा को समृद्ध किया है, बल्कि गुरु प्रतिष्ठा के प्रति दूसरों के प्रेरणा स्त्रोत भी बने हैं। डॉ. प्रदीप कुमार राव बताते हैं कि नाथ परंपरा के मूल में योग है। योग के मूल में गुरु-शिष्य परंपरा समाहित है। योग पूरी तौर पर व्यवहारिक क्रियाओं पर आधारित है। बिना गुरु के योग को साधना मुश्किल ही नहीं असंभव है, ऐसे में योग और गुरु परंपरा को एक दूसरे का पूरक कहना गलत नहीं होगा। इस तर्क से नाथ पंथ और गुरु पूर्णिमा का जुड़ाव स्पष्ट हो जाता है। योग की परंपरा को अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करने के लिए ही नाथ पंथ की स्थापना के समय से ही गुरु-शिष्य परंपरा उससे अनिवार्य रूप से जुड़ी रही ।

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