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नफ्स पर काबू रखना रोजे की पहली फजीलत – मौलाना कामिल हुसैन नदवी

 

संवाददाता मुदस्सिर हुसैन IBN NEWS मवई अयोध्या

12/05/2021 मवई अयोध्या – माहे रमज़ान का मुकद्दस महीना बरकत, मगफिरत, व अल्लाह को राजी करने का महीना है। यह बातें मदरसा आईशा लिल बनात के सदर हज़रत मौलाना कामिल हुसैन नदवी ने इस मुकद्दस महीने पर रोशनी डाली, उन्होंने कहा कि जो मुसलमान खुदा को राजी करने के लिए पूरे तौर तरीके से रोजा रखता है अल्लाह इसकी मगफीरत (माफ) कर देता हैं। नफ्स पर काबू रखना रोजा की पहली फजीलत है।

यह माह मुसलमानों के लिए बरकत का माह बताया गया है। अगर इस माह में आदमी दिल से तौबा कर ले, तो अल्लाह उसके गुनाहों को माफ़ कर देता है। अल्लाह ने रोजे को इंसान के लिए एक इम्तिहान के तौर पर रखा है। जो इंसान अल्लाह के इस इम्तिहान में कामयाब (सफल) होगा, उसे जन्नत नसीब होगी। एक माह के रोजे साल में एक इंतिहान (परीक्षा) के तौर पर आते हैं। अल्लाह देखता है कि मेरे बंदे मेरी कितनी इबादत करते हैं।

 

हम सभी को रोजे की पूरी फजीलत के बारे में मालूम होना चाहिए। रोजेदार को दूसरे की किसी भी चीज पर नजर नहीं रखनी चाहिए। यह गुनाह हैं। अगर इंसान को सच्चा अल्लाह का बंदा बनना है तो उसे अल्लाह व उसके रसूल के बताए रास्ते पर चलना होगा। तभी उसकी जिंदगी कामयाब होगी। रोजे के दौरान अगर इंसान वहीं जिंदगी जी रहा है, जिसे वह आम दिनों की तरह जीता है, जिसमें वह गुनाह तक करता है। ऐसे में वह रोजे का हक नहीं अदा कर रहा है। तो अल्लाह उसे माफ़ नहीं करेगा।

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