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बड़े मंगल का पौराणिक महत्व व इतिहास

 

लेखक-पं.अनुराग मिश्र

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥ अर्थात:- अश्वत्थामा, बलि, व्यास, श्रीहनुमान जी, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सातों चिरंजीवी हैं ! धार्मिक ग्रंथों व हिन्दू मान्यता के अनुसार हनुमानजी इस कलियुग के जागृत देवता हैं और इस कलियुग में भी उपस्थित रहकर समय-समय पर अपने भक्तों की रक्षा करते रहते हैं और इसी मान्यता के अनुसार पूरे देश में भगवान श्रीराम से कहीं अधिक मात्रा में उनके परमभक्त श्री हनुमानजी के मंदिर स्थापित हैं ! गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में इसे सिद्ध भी किया है …

मोरें मन प्रभु अस बिस्वासा। राम ते अधिक राम कर दासा

लगभग सभी धर्मग्रंथों में हनुमान जी का अवतार मंगलवार के दिन ही माना गया है शायद इसी कारण प्रत्येक
वर्ष ज्येष्ठ माह के प्रथम मंगलवार को बड़ा मंगल के रूप में मनाया जाता है साथ ही पूरे ज्येष्ठ माह में जितने भी
मंगलवार होते हैं उन्हें भी बड़े मंगल के नाम से ही जाना-पहचाना जाता है ! इस तरह ये पूरे ज्येष्ठ माह भर मनाया जाने
वाला एक ऐसा पर्व है जिसकी तुलना अन्य किसी पर्व से शायद ही हो सके ! अवध नरेश मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम के प्रिय
अनुज श्रीलक्ष्मण जी के द्वारा बसाये गये पौराणिक नगर लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) में इसकी महत्ता सर्वाधिक है पौराणिक कथा-
कहानी के अनुसार बड़े मंगल का प्रारंभ श्रीलक्ष्मणपुरी (लखनऊ) से ही हुआ था किन्तु वर्तमान समय में प्रदेश के लगभग
सभी जिलों में बड़ा मंगल का पर्व पूरे ज्येष्ठ माह भर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है !

बड़ा मंगल लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) के सबसे बड़े मेले के रूप में अपना अलग ही स्थान रखता है जिस तरह
श्रावण मास में प्रदेश के अनेकों जिलों के श्रद्धालुजन भोलेनाथ की काँवर लेकर बाराबंकी जिले के महादेवा मंदिर तक पैदल
यात्रा करते हैं ठीक उसी तरह ज्येष्ठ माह में बड़े मंगल के सप्ताह भर पहले से ही प्रदेश के अनेकों जिलों से बजरंगबली के
सैकड़ों-हजारों भक्त केवल एक लाल लंगोट पहने सड़क पर पेट के बल लेट-लेट कर दण्डवती परिक्रमा करते हुए पवनपुत्र के
मंदिर में उनके दर्शन हेतु जाते हैं ।

श्रीलक्ष्मणपुरी (लखनऊ) में वैसे तो बजरंगबली के हजारों मंदिर हैं किन्तु श्री हनुमान जी के दो मंदिर
सबसे प्राचीन और सिद्ध माने जाते हैं जिनमे अलीगंज स्तिथ पुराना हनुमानजी का मंदिर और अलीगंज में ही स्तिथ नये
हनुमान जी का मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है ! मान्यता है कि इन्ही दोनों मंदिरों से ही बड़ा मंगल मनाने की परंपरा की
शुरुआत हुई जो आज धीरे-धीरे पूरे प्रदेश और देश के कुछ हिस्सों में फ़ैल चुकी है !

कुछ पौराणिक तथ्यों के अनुसार प्राचीन पुराने हनुमान मंदिर का इतिहास रामायण काल से सम्बंधित है ! ये प्राचीन
हनुमान मंदिर आज की डंडहिया बाजार से थोड़ी दूर पर ही हनुमान बाड़ी (इस्लामबाड़ी) नामक स्थान में स्थित था। मान्यता
है कि जब अयोध्या लौटने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अयोध्या के जनसामान्य में फैले अपवाद के कारण
माता सीताजी को वन भेजने का निश्चय कर लिया तब उनकी आज्ञा से श्रीलक्ष्मण जी आर्य सुमंत के साथ सीताजी को लेकर
कानपुर जिले के बिठूर नामक स्थान पर जा रहे थे जहाँ आदिकवि व आदिग्रन्थ “रामायण महाकाव्य” के रचयिता महर्षि
वाल्मीकि जी का आश्रम था, तब रास्ते में वर्तमान अलीगंज के पास आते-आते काफी अंधेरा हो गया और रात भर रास्ते में ही
विश्राम करने की आवश्यकता प्रतीत हुई।

 

अत: वे तीनों रास्ते में ही सोच-विचार के लिये रूक गये। जिस स्थान पर वे रूके थे, वहाँ (वर्तमान हीवेट पॉलीटेक्निक की बगल से पुराने अलीगंज-मन्दिर को जाने वाली सड़क पर) एक बड़ा सा बाग था। यद्धपि लक्ष्मणजी चाहते थे कि कुछ दूर और चलकर गोमती के उस पार (शहर की ओर) बनी अयोध्या राज्य की चौकी में विश्राम करें, वो चौकी ठीक उसी स्थान पर स्थित थी जिसे वर्तमान में लक्ष्मण टीला (टीले वाली मस्जिद) कहा जाता है किन्तु सीता जी अब किसी भी भवन में जाने की इच्छुक न थीं अंत: उसी स्थान पर रात्रि विश्राम के पश्चात अगले दिन बिठूर स्थित महर्षि वाल्मीकि आश्रम की ओर चले गये !

धार्मिक कथाओं के अनुसार उसी बाग में सदियों से पौराणिक हनुमानजी का मन्दिर था, जिसमें हनुमान जी की मूर्ति स्थापित थी और उस पूरे क्षेत्र सहित उस बाग को भी हनुमानबाड़ी कहा जाता था । यह मन्दिर उसी स्थान पर शताब्दियों तक बना रहा । किन्तु 14 वीं शताब्दी के आरम्भ में आक्रान्ता बख्तियार खिलजी ने इस मंदिर को तुड़वा दिया और मंदिर के मलबे के नीचे ही हनुमानजी की मूर्ति दबी रह गयी किन्तु क्षेत्रीय हिन्दुओं में इस खँडहर अवस्था वाले मंदिर के प्रति भी भक्तिभाव सदैव बना रहा और वे वहाँ भजन-पूजन इत्यादि करते रहे ! इसके साथ ही दुर्दांत आक्रान्ता बख्तियार खिलजी ने हनुमानबाड़ी का नाम बदल कर इस्लामबाड़ी रख दिया, जो कि वर्तमान में चौधरी टोला के नाम से प्रसिद्द है । कल्याण हनुमंता नामक धार्मिक ग्रंथ में भी श्रीहनुमान जी के इस मंदिर को माता सीताजी के वनवास के समय ही स्थापित होने का वर्णन मिलता है !

पुराने हनुमानजी मंदिर जीर्णोधार की किवदंतियों के अनुसार अवध के तत्कालीन नवाब की बेगम आलिया के जब कई वर्षो तक कोई संतान नहीं हुई और बहुत से हकीम-वैधों की दवाइयों और पीर-फकीरों की दुआओं ने भी जवाब दे दिया, तब कुछ लोगों ने उन्हें हनुमान बाड़ी (इस्लामाबाड़ी) वाले बाबा के पास जाकर प्रार्थना करने की सलाह दी। ऐसा कहा जाता है कि वे हनुमान बाड़ी (इस्लामाबाड़ी) गई और सन्तान होने की उनकी अभिलाषा पूरी हुई। ऐसी किंवदन्ती है कि जब वे गर्भवती थीं, तब उन्हें फिर स्वप्न हुआ, जिसमें उनके (गर्भस्थ) पुत्र ने उनसे कहा कि हनुमान बाड़ी (इस्लामबाड़ी) में उसी जगह हनुमान जी की मूर्ति गड़ी है जहाँ उन्होंने प्रार्थना की है अतः उसे निकलवाकर पुनः मन्दिर में प्रतिष्ठित किया जाये, फलत: बच्चे के जन्म के बाद आलिया बेगम वहाँ गयीं और नवाब के कारिन्दों ने उस स्थान को खोद कर नीचे से मूर्ति निकाल ली गयी।

 

जिसे पुनः एक बार फिर उसी स्थान पर मंदिर में पुनर्प्रतिष्ठा करके स्थापित करवाया गया ! आलिया बेगम के द्वारा हनुमानजी के मंदिर की पुनर्स्थापना के कारण ही इस पूरे क्षेत्र का नाम कालांतर में हनुमानबाड़ी (इस्लामबाड़ी) के स्थान पर अलीगंज प्रसिद्ध हुआ ! आलिया बेगम हनुमानजी की अनन्य भक्त थी और लगभग हर दिन वो बजरंगबली के दर्शन हेतु जाती थीं ! मंदिर के शीर्ष पर लगा चाँद-तारा बेगम के द्वारा ही समर्पित किया गया था इसके अलावा उन्होंने अपने बेटे शहदाद अली खान का घरेलू नाम “मंगलू” भी रखा था !

नये हनुमान जी मंदिर निर्माण की किवदंतियों के अनुसार नवाब वाजिद अली शाह के समय में केसर-कस्तूरी का एक मारवाड़ी व्यापारी जटमल लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) आया और चौक के निकट की तत्कालीन सबसे बड़ी सआदतगंज की मंडी में कई दिन तक पड़ा रहा, किन्तु अधिक मँहगी होने के कारण उसके दर्जनों ऊँटों पर लदी केसर ज्यों-की-त्यों पड़ी रह गयी, किन्तु उसे खरीददार नहीं मिला। कहा जाता था कि इस मंडी की प्रशंसा बड़ी दूर-दूर तक थी। फारस, अफगानिस्तान तथा कश्मीर आदि से मेवों, फलों तथा जेवरात आदि के बड़े-बड़े व्यापारी वहाँ आते थे। मारवाड़ी व्यापारी बड़ा निराश हुआ और लोगों से कहने लगा कि यहाँ के नवाबों का मैंने बड़ा नाम सुना था किंतु वह सब झूठ निकला' इतनी दूर आकर भी खाली हाथ लौटने के
विचारमात्र से ही वह बड़ा दु:खी हुआ और अयोध्या की ओर चल दिया। रास्ते में जिस स्थान पर वर्तमान में नया हनुमान मंदिर है उसी स्थान पर आकर जब वह विश्राम के लिये रूका, तब उस स्थान के लोगों ने उससे कहा कि ये पूरा क्षेत्र श्रीहनुमान जी का ही क्षेत्र है अतः तुम अपने माल की बिक्री के लिये उन्हीं से प्रार्थना करो सबके समझाने पर जटमल ने हनुमान जी से अपने माल की बिक्री के लिए प्रार्थना की।

ऐसा कहा जाता है कि संयोगवश उन्हीं दिनों नवाब वाजिद अली शाह अपनी कैसर बेगम के नाम पर कैसरबाग का निर्माण करा रहे थे। किसी ने उनको राय दी कि यदि इस कैसरबाग की इमारत को केसर-कस्तूरी से पुतवा दिया जाये तो सारा इलाका ही अत्यंत सुवासित हो जायेगा। और जब पता चला कि एक व्यापारी केसर कस्तूरी की बिक्री के लिए जगह-जगह घूम रहा है तो उन्होंने जटमल की सारी कस्तूरी उसके मुँह माँगे दाम पर खरीद ली !

जटमल के हर्ष का काई ठिकाना नहीं रहा, उसकी हनुमानजी से की गयी प्रार्थना फलीभूत हो चुकी थी ! उसने नवाब से उसी स्थान पर नया हनुमानजी का मंदिर बनवाने की आज्ञा लेने के साथ ही अपनी सारी जमा पूंजी हृदय खोलकर बजरंगबली के भव्य मन्दिर निर्माण के लिए लगा दी ! आज भी ,मन्दिर के भीतर मूर्ति पर जो छत्र लगा है, वह इसी व्यापारी जटमल का बनवाया हुआ है । मंदिर के शीर्ष पर लगा गुम्बद भी उसी व्यापारी जटमल द्वारा ही बनवाया गया है !

सन 1848 में जेठ के पहले मंगलवार को ही अलींगज के नये हनुमान मन्दिर में हनुमान जी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गयी
थी अतः इसी कारण उसी समय से लखनऊ में ज्येष्ठ के मंगलो में बजरंग बली का विशेष पूजन कर लोगों को मीठा शरबत और ठंडा जल पिलाने की परम्परा प्रचलित है ! जिसका सीधा और स्पष्ट उद्देश्य ये है कि गर्मी के मौसम में सबसे अधिक गर्म महीना ज्येष्ठ माह का ही होता है। आयुर्वेद में भी जेठ के महीने में मनुष्य का पैदल चलना वर्जित बताया गया है। क्योंकि पहले लोग ज्यादातर पदयात्रा ही करते थे और उस समय हैण्ड पंप और पानी की टंकी इत्यादि की भी व्यवस्था नहीं थी । इस कारण लोगों को ज्येष्ठ की चिलिचिलाती गर्मी में पदयात्रा के दौरान अपनी प्यास बुझाने के लिए जगह-जगह भटकना पड़ता था ! वैसे तो पूरे सप्ताह गर्मी रहती है किन्तु मंगल स्वयं अग्निकारक है, इसी कारण ज्येष्ठ के हर मंगलवार को प्रचंड गर्मी पड़ती है।

इसीलिये मंगलवार के दिन बजरंगबली के भक्तों को मीठा शरबत व गुड़-चीनी अथवा मिठाई के साथ ठण्डा जल पिलाया जाता है। पुराणों में भी वर्णित है कि अन्नदान और जलदान से बड़ा कोई भी दान नहीं है।

हर वर्ष ज्येष्ठ के सभी मंगलवार बजरंगबली के भक्तों के लिये किसी वरदान से कम नहीं होते ! बाबा के भक्त ज्येष्ठ के हर मंगलवार को इन दोनों मंदिरों के साथ ही पवनपुत्र के अन्य मंदिरों में भी श्रधापूर्वक दर्शन करके हनुमान जी को लड्डुओं का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं इसके साथ ही नये हनुमान मंदिर के आस पास के पूरे क्षेत्र में पूरे माह एक विशाल मेला भी लगता है जिसमे दूर-दूर से आये भक्त बजरंगबली के दर्शन करने के पश्चात बाबा के दर्शनों की याद में कुछ न कुछ खरीदारी भी अवश्य करते हैं ! इसके अतिरिक्त ज्येष्ठ माह में बजरंगबली के भक्तों के द्वारा विशाल भंडारों का भी आयोजन पूरे शहर के हर गली-मोहल्ले में किया जाता है जिसमें पूरे माह हनुमानजी के भक्तों के साथ ही गरीबों और जरुरतमंदों को भी शुद्ध और सात्विक भोजन प्राप्त होता रहता है !

 

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