आरा ( भोजपुर ) साहित्य एवं कला परिषद, के तत्वावधान में महान साहित्यकार पंडित राम दहिने मिश्र की पुण्यतिथि का आयोजन किया गया।इसमें अनेक साहित्यकारों ने भाग लेकर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला।इस कार्यक्रम में ब्रह्मदेव पाठक श्री नंद मोहन मिश्र,श्री अमरेन्द्र कुमार मिश्र,श्री अमित कुमार,समुंदर सिंह आदि गणमान्य जनों ने भाग लिया।श्री अमरेन्द्र कुमार मिश्र ने बहुत सारी तत्संबंधी चर्चा की।जबकि –:भारतका एक ब्राह्मण..संजय कुमार मिश्र “अणु” ने उनके जीवनी पर प्रकाश डालते हुए बताया…आरा जिला मुख्यालय से नातिदुर दक्षिण दिशा में अवस्थित है गडहनी प्रखंड। इसी गडहनी प्रखंड से पश्चिम दिशा में एक अग्रणी गाँव है पथार। जी हाँ वही पथार गाँव जीसे विद्या गुण समृद्ध जान लोग काशी का टुकड़ा कहकर आदर देते रहे हैं।
जो महान साहित्य सेवी मनिषि पं.रामदहिन मिश्र का जन्मभूमि रहा है।पं.रामदहिन मिश्र का जन्म एक कुलीन शाकद्वीपीय ब्राह्मण परिवार में हुआ।इनके पिता श्री सिद्धेश्वर मिश्र जी डुमराँव महाराज के विश्वास पात्र ज्योतिषी,कर्मकांडी एवं पुरोहित थे।घर में संस्कृत और संस्कार का प्रभुत्व था।
जाहिर सी बात है बालक रामदहिन मिश्र की शिक्षा दीक्षा संस्कृत भाषा के माध्यम से हुई।कालांतर में दही सरस्वती की इतनी महती कृपा हुई की हरेक हिंदी भाषाभाषी इस नाम से सुपरिचित हुआ।अपने कार्य के प्रति समर्पण,सेवापरायणता,विलक्षण काव्य कुशलता,वाक्पटुता,सहृदयता तथा सरलता सहजता ने इन्हें अपरिमित और अपराजेय बना दिया।जो एक साधारण शिक्षक से असाधारण प्रकाश स्तंभ तक बने।आज भी हम जैसे साधारण साहित्य सेवियों के लिए वे ध्रुव सा मार्ग निर्देशित कर रहे हैं।उन्होंने जो भी समाज को दिया वह सब बेजोड निपुणता और योग्यता पूर्वक दिया।पंडित मिश्र जी में पांडित्य कुट-कुटकर भरा था पर वे स्वभावतः परम सरल-सहज और सुलभ रहे। कहीं भी अहंकार या दिखावा नहीं था।
आज भी आसपास के जगहों पर इनकी विमल कृति का यशोगान अनेक निर्मित संस्था और शाला कर रहे हैं। वे अपने पैतृक जन्म भूमि पथार में प्राथमिक विद्यालय, औषध्यालय,संस्कृत विद्यालय, महादेव मंदिर आदि का निर्माण करवाये।गडहनी में उच्च विद्यालय का आधर रखें। बिहार की राजधानी पटना में ग्रंथमाला कार्यालय,बाल शिक्षा समिति और हिंदुस्तानी प्रेस इनके कृतियों का बखान कर रहा है।पंडित जी बाल काल या कहिए अध्ययन काल कई स्थानों पर बीता।प्रारंभ में पिताजी के सानिध्य में डुमराँव,टिकारी,काशी, आरा,पटना समेत अन्यान्य जगहों पर व्यतीत हुआ।इनकी मित्र मंडली भी विशाल था।रामबृक्ष बेनीपुरी,आचार्य केशरी कुमार,जगदीश चंद्र माथुर, भगवत शरण उपाध्याय, देवराज उपाध्य,जरुर बख्श, किशोरी दास वाजपेयी,पं.हंसकुमार तिवारी,रामधारी सिंह दिनकर और डा.राजेंद्र प्रसाद जैसे लोग रहें हैं।जब अंग्रेजों का जमाना था। अंग्रेजी शिक्षा पर बहुत जोर था तब इनके द्वारा रचित हिंदी व्याकरण ‘रचना विचार’ समादृत रही थी।
ये पटना ट्रेनिंग कालेज के प्रिंसिपल थीकेट एवं प्रो.प्रेस्टन को हिंदी-संसकृत की शिक्षा देते थे।अध्ययन-अध्यापन के क्रम में हीं प्राथमिक से लेकर प्रवेशिक कक्षा तक के विविध विषयों पर पाठ्य पुस्तकों का प्रणयन किया। ये बहुतेरे पुस्तकों का संपादन और रचना किये।पं.जी एक हीं साथ लेखक,अध्यापक,पत्रकार,संपादक,साहित्यकार, प्रकाशक, मुद्रक और पुस्तक विक्रेता तक रहें। बाल साहित्य,नाटक और चलचित्र पर भी इनका समान अधिकार था।पं.रामदहिन मिश्र जी के जीवन में सरस्वती और लक्ष्मी की विशेष कृपा रही।ये पर्याप्त यश और धन वैभव कमाये पर कभी अहंकार को अपने पास फटकने नहीं दिया। सदा जीवन उच्च विचार के ये निर्वाहक रहे।काव्य शास्त्र में इनकी रचना आज अमूल्य धरोहर है लोगों के बीच।
जीवन के अंतिम क्षण में वे पटना छोड काशी वासी बनें। काशी में हीं एक दिसंबर १९५२ में ये साहित्य का सितारा चल बसा।इनके स्वर्गवास का दुखद समाचार सुन ततकालीन राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद जी को बडा दुख हुआ था। वे अपने उद्बोधन में कहें, कि “उनहोंने जो साहित्य की सेवा की है इसके लिए वे सदा अमर रहेंगें।वहीं दिनकर जी लिखते हैं… पं.रामदहिन मिश्र जी एक कर्मठ साहित्यकार थे। जाते-जाते भी वे हम सबको काव्य शास्त्र जो देकर गए उनके कारण वे इतिहास में अमर रहेंगें।आज हम सबों का ये दायित्व है की उनके समग्र चिंतन धारा को अपनाकर उस परंपरा को आगे बढायें।यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी।
रिपोर्ट अमरेन्द्र कुमार मिश्र IBN24X7NEWS भोजपुर